Nios 10th Science (212) Hindi Medium Solved Assignment TMA 2024-25

Science and Technology (212)

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Nios 10th Science (212) Hindi Medium Solved Assignment

20% Marks Of Theory

1. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40 से 60 शब्दों में दीजिए।

(b) एक वस्तु को 49 मीटर की ऊंचाई से गिराया जाता है।

(a) वस्तु द्वारा तय की गई दूरी :

(i) ज़मीन पर गिरने से पहले।

(ii) अपनी यात्रा के अंतिम सेकंड में ज्ञात कीजिए |

(b) जमीन पर गिरने से पहले वस्तु द्वारा लिया गया समय ज्ञात कीजिए।

(c) उस वेग की गणना करें जिसके साथ यह जमीन से टकराती है।

उत्तर: एक वस्तु को 49 मीटर की ऊंचाई से गिराया जाता है। दिया गया है:

  • प्रारंभिक वेग (u) = 0 m/s (चूंकि वस्तु को गिराया जाता है, प्रारंभिक वेग शून्य होता है)
  • त्वरण (a) = g = 9.8 m/s² (गुरुत्वीय त्वरण)
  • दूरी (s) = 49 m

(a) वस्तु द्वारा तय की गई दूरी:

(i) ज़मीन पर गिरने से पहले: वस्तु द्वारा तय की गई दूरी दी गई है, जो कि 49 मीटर है।

(ii) अपनी यात्रा के अंतिम सेकंड में:

  • सबसे पहले, हम कुल समय ज्ञात करेंगे जो वस्तु को जमीन पर गिरने में लगता है।
  • फिर, अंतिम सेकंड में तय की गई दूरी ज्ञात करने के लिए हम समीकरणों का उपयोग करेंगे।

(b) जमीन पर गिरने से पहले वस्तु द्वारा लिया गया समय:

हम सूत्र s = ut + (1/2)at² का उपयोग करेंगे। 49 = 0*t + (1/2)9.8t² t² = 10 t = √10 सेकंड

(c) उस वेग की गणना करें जिसके साथ यह जमीन से टकराती है:

हम सूत्र v² = u² + 2as का उपयोग करेंगे। v² = 0² + 29.849 v² = 960.4 v ≈ 31 m/s

अतः

  • वस्तु द्वारा अपनी यात्रा के अंतिम सेकंड में तय की गई दूरी ज्ञात करने के लिए, हमें कुल समय में से 1 सेकंड घटाकर नया समय ज्ञात करना होगा, फिर नए समय के लिए दूरी ज्ञात करनी होगी और फिर कुल दूरी में से यह दूरी घटा देनी होगी।
  • वस्तु जमीन से 31 मीटर प्रति सेकंड के वेग से टकराती है।


2. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40 से 60 शब्दों में दीजिए।

(b) राकेश कपड़े धोने की दुकान चलाता है। उनके मोहल्ले में पानी में साबुन से झाग नहीं बनता, ऐसे पानी को क्या कहा जाता है? कुछ उपाय सुझाइए जो राकेश को इस समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकें।

उत्तर: राकेश के मोहल्ले में जो पानी साबुन से झाग नहीं बनाता, उसे कठोर जल कहा जाता है। कठोर जल में कैल्शियम और मैग्नीशियम के लवण की मात्रा अधिक होती है जो साबुन के साथ अभिक्रिया करके घुलनशील यौगिक बनाते हैं, जिससे झाग नहीं बनता।

राकेश इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:

  • जल को उबालकर: उबालने से जल में उपस्थित कैल्शियम और मैग्नीशियम के लवण अवक्षेपित हो जाते हैं और जल नरम हो जाता है।
  • जल को छानना: जल को किसी अच्छे फ़िल्टर से छानने से भी कुछ हद तक कठोरता कम की जा सकती है।
  • साबुन के स्थान पर डिटर्जेंट का उपयोग करना: डिटर्जेंट कठोर जल में भी झाग बनाते हैं।
  • जल को नरम करने वाले रसायनों का उपयोग करना: सोडियम कार्बोनेट जैसे रसायनों को मिलाकर जल को नरम किया जा सकता है।

इन उपायों को अपनाकर राकेश कपड़े धोने की समस्या को आसानी से हल कर सकते हैं।


3. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40 से 60 शब्दों में दीजिए।

(b). कोविड-19 किस प्रकार का रोग हैः संक्रामक या असंक्रामक? इस रोग को करने वाले कारक का नाम बताइये। कोविड-19 से बचाव के क्या उपाय हैं?

उत्तर: कोविड-19 एक संक्रामक रोग है। यह एक नए प्रकार के कोरोनावायरस के कारण होता है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है।

कोविड-19 से बचाव के उपाय:

  • मास्क पहनें: सार्वजनिक स्थानों पर हमेशा मास्क पहनें।
  • सामाजिक दूरी बनाएं: दूसरों से कम से कम 2 मीटर की दूरी बनाए रखें।
  • हाथों को बार-बार धोएं: साबुन और पानी से या सैनिटाइजर से हाथों को नियमित रूप से धोएं।
  • भीड़-भाड़ वाले स्थानों से बचें: जहाँ तक संभव हो भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें।
  • टीकाकरण: कोविड-19 के खिलाफ टीका लगवाएं।

इन उपायों को अपनाकर आप कोविड-19 से खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं।


4. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए।

(b) फ्रांसीसी रसायनज्ञ एंटियिनी लेवाइजर ने अपने प्रयोगात्मक व्यवस्था में एक रासायनिक तुला का उपयोग करके रासायनिक अभिक्रियाओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया। एक प्रयोग में उन्होंने एक ऐसा पदार्थ लिया जो कमरे के तापमान पर तरल अवस्था में मौजूद रहने वाली एकमात्र धातु है और आमतौर पर एनालॉग थर्मामीटर में उपयोग किया जाता है। फिर उन्होंने इस पदार्थ को हवा से भरे एक सीलबंद फ्लास्क में कई दिनों तक गर्म किया। उन्होंने देखा कि एक नया लाल रंग का पदार्थ बन गया है। फ्लास्क में बची हुई गैस का द्रव्यमान कम हो गया।

(a) निम्नलिखित में से किन्ही दो के नाम लिखें : -

(i) वह पदार्थ जिसे सीलबंद फ्लास्क में गर्म किया गया था।

(ii) लाल रंग का नया पदार्थ जो कई दिनों के बाद बना था।

(iii) फ्लास्क में लाल रंग के पदार्थ के उत्पादन में प्रयुक्त हुई गैस।

(iv) फ्लास्क में बची हुई गैस।

(b) क्या सीलबंद फ्लास्क में हुआ परिवर्तनः रासायनिक परिवर्तन है या भौतिक परिवर्तन

(c) फ्लास्क में शेष गैस का द्रव्यमान क्यों कम हो गया?

(d) क्या फ्लास्क में शेष गैस के द्रव्यमान में कमी द्रव्यमान संरक्षण नियम का उल्लंघन करती है? संक्षेप में बताएं।

उत्तर: फ्रांसीसी रसायनज्ञ एंटियिनी लेवाइजर का प्रयोग:

प्रयोग का विश्लेषण:

एंटोनी लेवोज़ियर ने एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया जिसमें उन्होंने रासायनिक तुला का उपयोग करके रासायनिक परिवर्तन का अध्ययन किया।

(a) पदार्थों के नाम:

  • (i) वह पदार्थ जिसे सीलबंद फ्लास्क में गर्म किया गया था: यह पदार्थ पारा (Mercury) है। पारा कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में रहने वाली एकमात्र धातु है और आमतौर पर थर्मामीटर में प्रयोग किया जाता है।
  • (ii) लाल रंग का नया पदार्थ जो कई दिनों के बाद बना था: यह लाल रंग का पदार्थ पारा ऑक्साइड (Mercuric oxide) है।
  • (iii) फ्लास्क में लाल रंग के पदार्थ के उत्पादन में प्रयुक्त हुई गैस: यह गैस ऑक्सीजन (Oxygen) है।
  • (iv) फ्लास्क में बची हुई गैस: फ्लास्क में बची हुई गैस मुख्यतः नाइट्रोजन (Nitrogen) है।

(b) रासायनिक या भौतिक परिवर्तन:

फ्लास्क में हुआ परिवर्तन एक रासायनिक परिवर्तन है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस परिवर्तन में एक नया पदार्थ (पारा ऑक्साइड) बना है जिसके भौतिक और रासायनिक गुण मूल पदार्थ (पारा) से भिन्न हैं।

(c) फ्लास्क में शेष गैस का द्रव्यमान क्यों कम हो गया:

फ्लास्क में शेष गैस का द्रव्यमान कम हो गया क्योंकि गर्म करने पर पारा ने फ्लास्क में मौजूद ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर पारा ऑक्साइड बनाया। इस अभिक्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग हुआ जिसके कारण फ्लास्क में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई और इसीलिए कुल द्रव्यमान कम हो गया।

(d) क्या द्रव्यमान संरक्षण नियम का उल्लंघन हुआ?

नहीं, फ्लास्क में शेष गैस के द्रव्यमान में कमी द्रव्यमान संरक्षण नियम का उल्लंघन

नहीं करती है। द्रव्यमान संरक्षण नियम कहता है कि किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान न तो उत्पन्न होता है और न ही नष्ट होता है। इस प्रयोग में, हालांकि गैस का द्रव्यमान कम हो गया, लेकिन यह पारा ऑक्साइड के रूप में फ्लास्क में ही मौजूद है। अगर हम फ्लास्क में बने पारा ऑक्साइड का द्रव्यमान भी मापें तो हम पाएंगे कि कुल द्रव्यमान पहले जितना ही है।

निष्कर्ष:

लेवोज़ियर के इस प्रयोग ने दहन और श्वसन की प्रक्रिया में ऑक्सीजन की भूमिका को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रयोग ने द्रव्यमान संरक्षण के नियम को भी स्पष्ट किया।


5. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100 से 150 शब्दों में दीजिए।

(b) (a) "यदि हम जीवों की उत्पत्ति के साथ भूगर्भीय घड़ी को 24 घंटे के रूप में मान लें और उसे आधी रात को नियत करें, तो हम कह सकते हैं कि मनुष्य इस ग्रह पर बस एक मिनट से भी कम समय पहले आये हैं।" पृथ्वी पर जीवन के इतिहास के आलोक में कथन की व्याख्या करें।

(b) अलग अलग प्रकार के एपिथीलियमी ऊतक मानव शरीर में विभिन्न स्थान पर पाए जाते हैं। निम्नलिखित दिये गए स्थान से, एपिथीलियमी ऊतक के प्रकार की पहचान कर, उनका नाम और उनके द्वारा किए जाने वाले कोई भी एक कार्य को लिखें।

(i) एपिथीलियमी ऊतक जो त्वचा की सबसे बाहरी परत बनाता है।

(ii) एपिथीलियमी ऊतक जो आमाशय और आंत की आंतरिक परत बनाता है।

उत्तर: (a) पृथ्वी पर जीवन का इतिहास और कथन की व्याख्या:

यह कथन पृथ्वी पर जीवन के अत्यंत लंबे इतिहास की तुलना में मानव जाति के अपेक्षाकृत हाल के उदय को दर्शाता है। यदि हम पृथ्वी पर जीवन के आरंभ को आधी रात मानें, तो मनुष्य का आगमन लगभग 24 घंटे की इस अवधि के अंतिम कुछ सेकंडों में हुआ है। यह एक अतिशयोक्ति भरा तरीका है जिससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि पृथ्वी पर जीवन अरबों वर्षों से मौजूद है और मानव जाति का इतिहास तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा है।

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति लगभग 3.8 अरब वर्ष पहले हुई थी। शुरुआत में केवल सूक्ष्म जीव ही थे। धीरे-धीरे विकास के क्रम में जटिल जीवों का उदय हुआ। डायनासोर जैसे विशाल जीव भी पृथ्वी पर राज करते रहे लेकिन वे विलुप्त हो गए। मनुष्य का विकास लगभग 200,000 साल पहले हुआ। इस प्रकार, पृथ्वी पर जीवन के इतिहास में मानव जाति का आगमन बहुत ही हाल का है।

यह कथन हमें यह भी याद दिलाता है कि हम पृथ्वी पर अकेले नहीं हैं और हम इस ग्रह को अन्य जीवों के साथ साझा करते हैं। हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसे संरक्षित करना चाहिए।

(b) विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले एपिथीलियमी ऊतक:

एपिथीलियमी ऊतक शरीर के विभिन्न अंगों की बाहरी और आंतरिक सतहों को ढकते हैं। ये ऊतक कोशिकाओं की एक परत या कई परतों से बने होते हैं। ये कोशिकाएं एक दूसरे से बहुत ही पास-पास होती हैं और इनके बीच बहुत कम अंतरकोशिकीय स्थान होता है। एपिथीलियमी ऊतक शरीर को यांत्रिक चोट, रोगाणुओं और रासायनिक पदार्थों से बचाते हैं। ये अवशोषण, स्राव और उत्सर्जन जैसे कार्य भी करते हैं।

दिए गए स्थानों पर पाए जाने वाले एपिथीलियमी ऊतक:

(i) एपिथीलियमी ऊतक जो त्वचा की सबसे बाहरी परत बनाता है:

  • नाम: अस्तरदार शल्की उपकला (Stratified Squamous Epithelium)
  • कार्य: यह त्वचा को यांत्रिक चोट, रोगाणुओं और रासायनिक पदार्थों से बचाता है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।

(ii) एपिथीलियमी ऊतक जो आमाशय और आंत की आंतरिक परत बनाता है:

  • नाम: स्तम्भाकार उपकला (Columnar Epithelium)
  • कार्य: आंतों में स्तम्भाकार उपकला पाचन तंत्र में स्राव और अवशोषण के कार्य में सहायक होती है। यह आंतों की दीवार को क्षति से बचाती है और पाचन एंजाइमों का स्राव करती है।

अन्य प्रकार के एपिथीलियमी ऊतक और उनके कार्य:

  • घनाकार उपकला: यह गुर्दे की नलिकाओं, लार ग्रंथियों और अग्न्याशय में पाया जाता है। यह स्राव और अवशोषण के कार्य में सहायक होता है।
  • संक्रमणकालीन उपकला: यह मूत्राशय की दीवार में पाया जाता है। यह मूत्राशय के फैलाव और संकुचन में सहायक होता है।

निष्कर्ष:

एपिथीलियमी ऊतक शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये शरीर को विभिन्न प्रकार की चोटों से बचाते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों के कार्य को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं।


6. नीचे दिए गए योजनाओं में से कोई एक परियोजना तैयार कीजिए:

(b) उन वाहनों के बारे में जानकारी एकत्रित करें, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से चलते हैं और उन वाहनों के बारे में जो बिजली/विद्युत से चलते हैं। अपने निष्कर्षों की एक रिपोर्ट लिखें जिसमें दो प्रकार के वाहनों का विस्तृत तुलनात्मक विश्लेषण शामिल होना चाहिए।

(संकेतः दोनों प्रकार के वाहनों के फायदे, नुकसान, पर्यावरण पर प्रभाव, सीमाएँ, चुनौतियाँ, भविष्य के दृष्टिकोण, सतत विकास, आदि की तुलना कीजिये|)

साथ ही, बताएं कि इलेक्ट्रिक वाहन (विद्युत से चलने वाले वाहन) कैसे क्रांतिकारी कदम साबित हो सकते हैं और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता की चुनौती का समाधान प्रदान कर सकते हैं।

उत्तर: पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाहनों और इलेक्ट्रिक वाहनों का तुलनात्मक विश्लेषण:

परिचय:

आजकल परिवहन क्षेत्र में पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाहनों और इलेक्ट्रिक वाहनों के बीच एक महत्वपूर्ण बहस चल रही है। दोनों ही प्रकार के वाहनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। इस रिपोर्ट में हम इन दोनों प्रकार के वाहनों का विस्तृत तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे।

पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाहन:

पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाहन पेट्रोल, डीजल या सीएनजी जैसे जीवाश्म ईंधनों से चलते हैं। ये वाहन लंबे समय से उपयोग किए जा रहे हैं और इनकी तकनीक काफी विकसित है।

फायदे:

  • व्यापक नेटवर्क: पेट्रोल पंपों का व्यापक नेटवर्क होने के कारण इन वाहनों को चलाना आसान है।
  • तकनीकी रूप से परिपक्व: इन वाहनों की तकनीक काफी परिपक्व है और इनकी मरम्मत और रखरखाव आसानी से किया जा सकता है।
  • उच्च प्रदर्शन: ये वाहन उच्च प्रदर्शन वाले होते हैं और लंबी दूरी तक आसानी से चलाए जा सकते हैं।

नुकसान:

  • पर्यावरण प्रदूषण: ये वाहन हानिकारक गैसें उत्सर्जित करते हैं जिससे वायु प्रदूषण होता है और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है।

  • सीमित ईंधन: जीवाश्म ईंधन सीमित संसाधन हैं और इनके भंडार तेजी से खत्म हो रहे हैं।
  • उच्च रखरखाव लागत: इन वाहनों का रखरखाव काफी महंगा होता है।

इलेक्ट्रिक वाहन

इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी द्वारा संचालित होते हैं। इन वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है।

फायदे:

  • शून्य उत्सर्जन: इलेक्ट्रिक वाहन कोई भी हानिकारक गैस उत्सर्जित नहीं करते हैं, जिससे वायु प्रदूषण कम होता है और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में मदद मिलती है।

  • कम रखरखाव लागत: इलेक्ट्रिक वाहनों में चलने वाले पुर्जे कम होते हैं, जिससे इनका रखरखाव कम खर्चीला होता है।

  • शांत संचालन: इलेक्ट्रिक वाहन बहुत शांत होते हैं और इनसे कोई आवाज नहीं होती।

नुकसान:

  • सीमित रेंज: अभी भी इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज सीमित होती है और इनको बार-बार चार्ज करने की आवश्यकता होती है।

  • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: चार्जिंग स्टेशनों की संख्या अभी भी कम है।

  • उच्च लागत: इलेक्ट्रिक वाहन अभी भी पारंपरिक वाहनों की तुलना में अधिक महंगे हैं।

तुलनात्मक विश्लेषण

इलेक्ट्रिक वाहन: एक क्रांतिकारी कदम:

इलेक्ट्रिक वाहन भविष्य के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकते हैं। ये वाहन न केवल पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद करेंगे बल्कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को भी कम करेंगे। इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते उपयोग से पेट्रोलियम उत्पादों की मांग कम होगी और इससे ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।

भविष्य के दृष्टिकोण:

भविष्य में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। सरकारें भी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की नीतियां बना रही हैं। बैटरी तकनीक में लगातार सुधार हो रहा है जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज और प्रदर्शन में सुधार हो रहा है। चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी तेजी से हो रहा है।

निष्कर्ष:

पारंपरिक जीवाश्म ईंधन वाहन और इलेक्ट्रिक वाहन दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहन भविष्य के लिए एक अधिक टिकाऊ विकल्प हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से हम पर्यावरण को बचा सकते हैं और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा दे सकते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को पूरी तरह से अपनाने में कुछ समय लगेगा। सरकारों, उद्योगों और आम लोगों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा।

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